कहाँ गये वो दिन
दाम— यह एक ऐसा शब्द है, जो किसी भी चिज को पूर्णता में देखता है । उसको पूरापूर तौल लेता है । आप किसी का भी दाम लगा सकते हैं । किसी भी चिज का दाम लगा सकते हैं । दाम लगाना कोई मामुली काम नहीं है । दाम लगाने के लिए खास अनुभव का दरकार पड़ता है । नहीं तो वह चिज आपको नहीं पट सकता । यह भी याद रखें की कोई आप का भी दाम लगा सकता है ।
दाम शब्द का सबसे बड़ा विशेषता यह है कि इसका अर्थ जो कोई भी समझ लेता है । और, किसी न किसी तरह लोग इसका व्यवहार भी कर ही रहा होता है । दाम नाम जाति का शब्द है । इसका मूल संस्कृत में ‘द्रमे’, जिस का तात्पर्य मुद्रा, द्रव्य, रुपया, पैसा होता है । ये सभी शब्द हिन्दी, मैथिली, नेपाली, भोजपुरी, अवधि, थारू आदि भाषाओं में समान रूप से प्रयोग किये जाते हैं ।
दाम का ऐतिहासिक अर्थ भी है । आज छोटा से छोटा वस्तु क्यों न हो । उसका मूल्य एक रुपया से ज्यादा ही होगा । आज कल बजार में १ रुपया तो क्या १० रुपया का भी शक्कर खरिदने से नहीं मिलेगा । २५ का एक पाव लो तो मिलेगा । याने कि सय रुपया किलो । दादा जी से जा कर पुछो तो अपने जमाने की ले कर बैठ जाएंगे । बोलेंगे— हमारे जमाने में तो खाँडसारी १ पैसा का १ पसेरी मिलते थे । मतलब कि एक रुपया ले कर दुकान जाओ तो आप को कुछ भी किनने को नहीं मिलेगा । भगवान के नाम पर मांगने वाले भी एक रुपया नहीं लेते । लेकिन एक जमाना था । एक पैसा का महत्व बहुत ही अधिक होता था । एक पैसा का भी चार हिस्सा किया जाता था । उस एक पैसा का चौथा हिस्सा को ‘दाम’ कहा जाता था । अर्थात चार दाम का एक पैसा । चार पैसा का एक आना । सोलह आना का एक रुपया । आज कल चार पैसे पर विचार करने वालों को हम सिरफिरा ही कह सकते हैं । चार पैसा बस प्रतीक के तर्ज पर सिमट गया है । मसलन ‘चार पैसे क्या मिले….’