पाकिस्तान प्रशासित क्षेत्र में सर्जिकल स्ट्राइक के दावे पर भारत सरकार को पुख़्ता सबूत देना चाहिए. सरकार अगर सबूत देती है, तो उसका फ़ायदा ही होगा. विपक्ष इस मुद्दे को उठा रहा है, उसमें भी कुछ ग़लत नहीं है.

पाकिस्तान को अगर छोड़ भी दें तो भी इंटरनेशनल मीडिया ने इस मुद्दे पर जो लिखा है, उसमें भी कई सवाल हैं.

न्यूयार्क टाइम्स ने आधे पन्ने का लेख लिखा है कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है. वाशिंगटन पोस्ट ने भी कुछ ऐसा ही लिखा है.

बीबीसी ने अपने संवाददाता को सीमा पर भेजकर वहां के गांव का हाल लिखा है, जिसमें स्थानीय लोग बता रहे हैं कि गोलीबारी हुई थी, हमला नहीं हुआ और कोई हताहत नहीं हुआ था.

भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखाImage copyrightAFP

मैंने जहां तक पढ़ा है केवल आयशा सिद्दिका ने लिखा है कि एक जगह पर 200 मीटर अंदर तक भारतीय सेना गई और चार पांच चरमपंथियों को मारकर वापस लौट गई. लेकिन बाक़ी कोई नहीं कह रहा है कि ऐसा हुआ है.

अगर ऐसा हुआ है, तो इसके कई परिणाम हो सकते हैं. पहली बात तो यही है कि भारत आज तक अपनी परंपरागत सेना का इस्तेमाल इस तरह नहीं करता था और ना ही वो नियंत्रण रेखा को पार करती थी.

चरमपंथियों पर कार्रवाई के लिए भी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश नहीं करने का दबाव रहता था. पाकिस्तान के एटमी हमले को लेकर भारत को डराया जाता था, अब वह डर समाप्त हो गया है.

इसलिए रणनीतिक तौर पर भारत को फ़ायदा हुआ है. लेकिन इस स्ट्राइक पर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, वो अपनी जगह सही हैं. उनका जवाब देना बहुत ज़रूरी है.

क्या कोई सरकार अपने लोगों से झूठ बोल सकती है? अगर सच बोल रही है तो क्या लोगों को यक़ीन दिला सकती है कि हम सच बोल रहे हैं!

नियंत्रण रेखा पर तैनाती बढा दी गई

या आधा सच बोल रहे हैं? अगर किसी चीज़ के बारे में आधा सोच बोल रहे हैं तो क्या भरोसा कि किसी और मामले में पूरा सच बोलेंगे.

इस मौक़े पर विपक्षी दल पाकिस्तान के बहाने सरकार पर निशाना साध रहे हैं. क्योंकि मौजूदा समय में जिस तरह का राष्ट्रवादी माहौल बन गया है कि अगर आप सेना पर सवाल उठाएंगे तो लोग (मोदी भक्त) आपके पीछे पड़ जाएंगे.

आप एंटी नेशनल ठहरा दिए जाएंगे. कोई भी इस मौक़े पर ये नहीं कहना चाहता कि भारतीय सेना ने ग़लत काम किया है.

सब यही कह रहे हैं कि सही काम किया है, लेकिन सवालिया निशान उठ रहे हैं तो स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि किन सैनिकों ने किया है, कैसे किया है.

ये सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, इस बहाने विपक्षी दल अपनी राजनीति भी कर रहे हैं.

देखिए तीन राज्यों में चुनाव होने हैं – पंजाब, उत्तर प्रदेश और गुजरात. इन तीनों जगह पर भारतीय जनता पार्टी की स्थिति डवांडोल है.

ऐसे में वे इस हमले का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे. जो कुछ भी सेना ने किया है, और, प्रधानमंत्री के आदेश पर किया है तो वो उसका फ़ायदा लेने की कोशिश करेंगे.

नियंत्रण रेखा

कांग्रेस भी करेगी, वो कह रही है कि उनके समय में भी ऐसे स्ट्राइक हुए थे, लेकिन मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए हमने उसे गोपनीय रखा.

पहले भी ऐसा होता रहा था. करगिल युद्ध के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उसी के नाम पर चुनाव लड़ा था और जीतकर आए थे.

हालांकि उस वक्त इस तरह के पोस्टर देखने को नहीं मिले थे और युद्ध के नाम पर वोट मांगने जैसी स्थिति भी नहीं थी. लेकिन पड़ोसी देशों के साथ तनाव की स्थिति का सियासी फ़ायदा उठाने की कोशिश होती रहती है.

इस बार ज़्यादा दिख रही है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के लिए दांव पर काफ़ी कुछ लगा हुआ है. अगर पंजाब और उत्तर प्रदेश का चुनाव वे हार जाते हैं तो सोचिए कि गुजरात में इनकी क्या स्थिति होगी!

(वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण से बीबीसी संवाददाता निखिल रंजन की बातचीत पर आधारित.) –वीवीसी हिन्दी

यो खबर पढेर तपाईलाई कस्तो महसुस भयो ?
0
0
0
0
0
0
0

प्रतिक्रिया दिनुहोस् !

संबन्धित खबर

ताजा खबर


धेरै पढिएको