इमरान ख़ानImage copyrightAFP

वैसे तो हमारे यहां हर मोड़ और महीना ही नाज़ुक होता है. लेकिन ये महीना तो बहुत ही नाज़ुक लग रहा है.

सीमा पर टेंशन तो चल ही रही है मगर अंदर भी बहुत कुछ है. नया आर्मी चीफ़ कौन होगा या फिर पुराना ही चलेगा?

इमरान ख़ान, जिन्हें कश्मीर से ज़्यादा पनामा स्कैंडल गेट्स स्कैंडल से दिलचस्पी है, इस बार उनको विश्वास है कि वो राजधानी इस्लामाबाद बंद कर देंगे ताकि नवाज़ शरीफ़ मज़बूर हो जाएं कि अपना त्याग पत्र हाथ में पकड़े इमरान ख़ान के चरणों में बैठकर गिड़गिड़ाएं कि महाराज प्रधानमंत्री पद पर आपका हक है, मैं तो जैसे तैसे अपनी ज़िंदगी मक्के मदीने की गलियों में झाड़ू लगाकर बीता ही लूंगा.

इमरान ख़ान केवल अपने हिमायतियों के लिए ही नहीं, अपने दुश्मनों के लिए भी पहेली हैं. एक लम्हे लगता है कि वे पाकिस्तान के अरविंद केजरीवाल हैं, दूसरे मिनट में डॉनल्ड ट्रंप हैं.

कभी कभी यूं लगता है कि इमरान ख़ान का वश चले तो अपने ख़िलाफ़ ही आंदोलन करके धरने पर बैठ जाएं.

कभी लगता है कि वे किसी एजेंसी के हाथ में छह बाई दो साइज का वो पैना हैं, जिससे हर कुछ समय बाद नवाज़ शरीफ़ की चूलें कसने का काम लिया जाता है. लेकिन पैना तो पैना है, उसे प्रधानमंत्री तो नहीं बनाया जा सकता है ना.

नवाज़ शरीफ़Image copyrightGETTY IMAGES

कुछ भी हो, इमरान ख़ान वो जीवन बीमा पॉलिसी हैं, जिसके होते हर कोई सोचने पर मज़बूर हो जाता है कि यार नवाज़ शरीफ़ पर ही गुजारा कर लो.

इमरान ख़ान से इस बार इस्लामाबाद बंद हो, ना हो, चैनलों के एक बार फिर मजे आ जाएंगे.

वैसे भी अगर चौबीस घंटों में से 20 घंटे का ड्रामा ख़ुद चलके आ जाए तो किस ख़बर के भूखे चैनल को बुरा लगता है.

ये महीना इसलिए भी नाज़ुक है क्योंकि बॉलीवुड ने पाकिस्तानी फ़नकारों का बॉयकॉट कर दिया है तो हमने भी भारतीय सिनेमा का बहिष्कार कर दिया है. यह सोचे बग़ैर कि हमारा तो अपना सिनेमा घर ही बॉलीवुड की नींव पर खड़ा है.

साल में दस हफ़्ते हम पाकिस्तानी फ़िल्में दिखा लेंगे लेकिन बाक़ी 42 हफ़्ते अपने 80 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन थियेटरों का पेट कैसे भरेंगे?

80 के दशक में जनरल जिया ने जब पाकिस्तान फ़िल्म इंडस्ट्री का गला अपने हाथों से घोंटा, तो मालिकों ने अपने सिनेमाओं को सुपरमार्केट, शॉपिंग सेंटर्स और पार्किंग लॉट बना दिया. इस बार भी क्या ऐसा ही होगा?

पाकिस्तानImage copyrightREUTERS
Image captionकराची के थिएटर में भारतीय कलाकार वाली फ़िल्म के प्रदर्शन की फ़ाइल तस्वीर.

बस यूं समझ लें, भारत में जो नवाज़ुद्दीन सिद्दकी के साथ हुआ है लगभग वही हमने भारतीय फ़िल्मों का बॉयकॉट करके अपने साथ कर लिया है.

सयाने ठीक है कहते थे कि अंधी देशभक्ति और शादी के मंडप पर दिमाग का क्या काम ? –वीवीसी हिन्दी

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