नीतीश कुमारImage copyrightPTI

कोई भी ये अनुमान लगा सकता है कि एक कामयाब मुख्यमंत्री, जो अपने दम पर ना सही लेकिन अपनी छवि पर एक हद तक चुनाव जीतने में कामयाब रहा हो, वह जब पार्टी की राष्ट्रीय बैठक के दौरान नेताओं से मिलेगा तो सहज भाव से और आत्मविश्वास से भरा होगा.

लेकिन ये बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के लिए नहीं कहा जा सकता.

बिहार के राजगीर में 16-17 अक्टूबर के बीच चल रही जनता दल यूनाइटेड पार्टी की राष्ट्रीय बैठक के दौरान नीतीश के असहज होने के कई कारण हैं.

बीते एक साल के दौरान जनता दल यूनाइटेड को अपने साझेदार राष्ट्रीय जनता दल के साथ कई असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा है.

ऐसे में नीतीश कुमार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ जनता दल यूनाइटेड के विस्तार के लिए विचार करेंगे ताकि ना केवल बिहार के अगले चुनाव बल्कि दूसरे राज्यों में भी पार्टी का बेस बढ़े.

हालांकि इस बात की आशंका भी है कि पार्टी के कुछ नेता नीतीश कुमार से अंसतुष्ट हैं, ये वो लोग हैं जो जो कुछ महीने पहले जिस तरह से नीतीश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, उससे नाराज चल रहे हैं.

पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जरूर हराया, लेकिन यह राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन के चलते संभव हो पाया था,

इतना ही नहीं महागठबंधन में कांग्रेस भी साझेदार थी. ऐसे में पार्टी की जीत पर आत्ममंथन से यही नतीजा निकल सकता है कि पार्टी की जीत की सबसे बड़ी वजह भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ एक महागठबंधन का बनना था.

नीतीश-लालूImage copyrightREUTERS

मेरी समझ से पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी के दूसरे नेता इस सच से वाकिफ होंगे. बिहार में राजद और जद(यू) के आपसी संबंध बहुत अच्छे नहीं हैं, ऐसे में पार्टी के सामने पार्टी को विस्तार देने की चुनौती है, ताकि अगर गठबंधन टूटे तो पार्टी चुनाव में उतर सके.

पार्टी को अपने कोर वोटरों का एक आधार विकसित करना होगा और इसमें दूसरों को भी शामिल करना होगा तभी पार्टी से नए मतदाता जुड़ेंगे.

यह तभी संभव होगा जब पार्टी नए कार्यक्रम और नीतियां लागू करेगी. ये आम लोगों के कल्याण पर आधारित होनी चाहिए और कुछ ख़ास समुदाय के लोगों को लक्ष्य बनाकर होना चाहिए. पार्टी को यह भी आंकना होगा कि मतदाताओं का कौन सा समूह टारगेट समूह हो सकता है.

पार्टी को नए मतदाताओं को शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए. इसके अलावा पार्टी को वैसा तंत्र भी विकसित करना होगा ताकि पार्टी के कार्यकर्ताओं का नेताओं से संवाद स्थापित हो सके. इस मुद्दे पर भी पार्टी के अंदर चर्चा होने की संभावना है.

इसके अलावा किसी भी पार्टी की राष्ट्रीय बैठक के दौरान संस्थागत ढांचे पर चर्चा तो होती ही है. इसको लेकर भी चर्चा हो तो अप्रत्याशित नहीं होगा. पार्टी के अंदर कई नेता उस तरीके से ख़ुश नहीं हैं जिसके तहत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पिछले दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.

कम से कम चार राज्यों के जनता दल यूनाइटेड प्रभारी इस तरीके से नाराज़ बताए जा रहे हैं, इनमें दिल्ली के बलबीर सिंह, उत्तराखंड़ के प्रमोद शर्मा, मध्य प्रदेश के गोविंद यादव और पश्चिम बंगाल के अमिताभ दत्ता शामिल हैं.

ये सब सार्वजनिक तौर पर पार्टी संविधान का हवाला देते हुए, सभी स्तरों पर प्रतिनिधियों की नियुक्ति नहीं होने के बावजूद राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल उठा चुके हैं.

लालू-नीतीश

हालांकि कोई ये कह सकता है कि ऐसा विरोध उन राज्य प्रभारियों का है, जहां पार्टी की नाममात्र मौजूदगी है और ऐसे में इसकी उपेक्षा की जा सकती है. लेकिन अगर पार्टी भविष्य में अपना विस्तार करना चाहती है तो उसे इन मुद्दों का हल तलाशना होगा.

दो तरीकों से इसका हल संभव है. एक तो राष्ट्रीय बैठक जैसे फोरम में इस पर बातचीत संभव है, या फिर दूसरा तरीका ये है कि छोटी बैठक में इसका हल निकाला जाए.

राष्ट्रीय बैठक, एक तरह से असंतुष्ट आवाज़ों को संतुष्ट करने का मौका उपलब्ध करा रहा है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि पार्टी के नेता पार्टी के आधार और दायरे को बढ़ाने के लिए दूरदर्शी सोच रखते हों.

(संजय कुमार सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के निदेशक हैं, आलेख में उनके निजी विचार हैं.) –वीवीसी हिन्दी

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